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आयशा कुरैशी प्रकरण से लेकर दर्जनों शिकायतें... जामसिंह अमलियार की भ्रष्ट कहानी कई साल पुरानी है... कितना धन गया और कितनी फाइलें दफन हुईं...? अमलियार के कार्यकाल की जांच हो...

25 दिसंबर 2025

झाबुआ

झाबुआ। जिले में रिश्वत लेते पकड़ाया गया लेखापाल जामसिंह अमलियार कोई पहली बार ऐसा खेल नहीं खेल रहा था... यह तो वर्षों से चली आ रही लापरवाहियों और लिपापोती का एक नमूना भर है... इसलिए अब जरूरी है कि उसके पूरे कार्यकाल की शिकायतें दोबारा खोली जाएं... ताकि यह सामने आ सके कि कितनी बार उसने फाइलों को पैसे के दम पर बंद करवाया और कितने लोगों का हक दबा दिया ...

जामसिंह अमलियार पर ऐसे कई आरोप है कि वह फाइलें नहीं देखता था... बल्कि फाइलों की कीमत तय करता था... जिस शिकायत को जितनी बड़ी रकम मिल जाए... वही शिकायत ‘समाप्त’ घोषित हो जाती थी...

 

आयशा कुरैशी प्रकरण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है...

झाबुआ उत्कृष्ट विद्यालय की तत्कालीन प्राचार्या आयशा कुरैशी, जो अभी रामा में बीईओ हैं... उनके कार्यकाल से जुड़े दस्तावेज जब सूचना के अधिकार में मिले... तो वह साफ बता रहे थे कि शिकायतकर्ता के आरोप सही थे... हर कागज बोल रहा था कि मामला गंभीर है... जांच निष्पक्ष हाेती ताे आयशा कुरैशी पर कार्रवाई हाेना संभव थी... लेकिन...

 

लेकिन उसके बाद क्या हुआ...?
वही पुराना खेल... धन का लेनदेन... जांच समिति का गठन और फिर बंद दरवाजों में समझौता... जिस शिकायत में सच्चाई साफ दिख रही थी... उसी को ‘कोई दोष नहीं’ बताकर खत्म कर दिया गया... आखिर क्यों...? क्योंकि फाइल से ज्यादा वजन किसी की जेब में रखी रकम का था ...

 

यह सिर्फ एक मामला नही... पूरा पैटर्न है...

अमलियार के कार्यकाल में ऐसी कितनी शिकायतें होंगी... जो फाइलों में बंद पड़ी है... कितने लोगों ने आवाज उठाई... पर उनकी फाइलें टेबल पर आते ही शांत कर दी गई और बदले में कितना पैसा गया... किस-किस तक गया... यह आज भी एक बड़ा सवाल है...

 

अब जब वह रंगे हाथ पकड़ा जा चुका है...

तो यह मौका है कि पूरे कार्यकाल की जांच दोबारा हो... हर वह फाइल खोली जाए जिसमें कभी किसी ने भ्रष्टाचार की आवाज उठाई थी और वह भी देखा जाए कि किन मामलों में सच्चाई होते हुए भी शिकायत ‘समाप्त’ क्यों कर दी गई...

 

अगर यह जांच ईमानदारी से हुई... तो निश्चित है कि सिर्फ एक रिश्वत प्रकरण नही... बल्कि पूरे कार्यकाल का भ्रष्टाचार सामने आ जाएगा...

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