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सूचना छुपाने की कीमत 30 हजार… राज्य सूचना आयोग की ऐतिहासिक सख्ती… दो प्रकरणों में सोसायटी प्रबंधक पर भारी जुर्माना…

13 दिसंबर 2025

सरदारपुर/भाेपाल

सरदारपुर/भाेपाल। सूचना का अधिकार कोई अनुग्रह नहीं… यह लोकतंत्र की वह खिड़की है… जिससे जनता सत्ता और व्यवस्था के भीतर झांक सकती है… लेकिन जब यही खिड़की भीतर से बंद कर दी जाए… तब सवाल सिर्फ कानून का नहीं… नीयत का भी बन जाता है…

                          मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने ठीक ऐसे ही एक मामले में सख्त संदेश दिया है… आदिम जाति सेवा सहकारी समिति बरमंडल के प्रबंधक को सूचना के अधिकार का उल्लंघन महंगा पड़ गया… आयोग ने दो अपील प्रकरणों में कुल तीस हजार रुपये का जुर्माना अधिरोपित किया है…

 

आयोग का साफ संदेश… कानून से ऊपर कोई नहीं…

राज्य सूचना आयुक्त उमाशंकर पचौरी ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी जानबूझकर रोकी गई… न समयसीमा का पालन किया गया… न आयोग के आदेशों को गंभीरता से लिया गया… यह सीधे-सीधे सूचना के अधिकार अधिनियम की अवहेलना है…

 

यह है पूरा घटनाक्रम…

आरटीआई कार्यकर्ता श्रीराम मारु ने आदिम जाति सेवा सहकारी समिति बरमंडल तहसील सरदारपुर जिला धार में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन प्रस्तुत किया था… निर्धारित समय में जानकारी नहीं मिलने पर प्रथम अपील की गई… लेकिन वहां भी चुप्पी पसरी रही…

                   जब द्वितीय अपील राज्य सूचना आयोग पहुंची… तो आयोग ने स्पष्ट आदेश दिए कि जानकारी निशुल्क उपलब्ध कराई जाए… इसके बावजूद सूचना नहीं दी गई… और मामला लगातार टाला जाता रहा…

 

सुनवाई में उजागर हुई लापरवाही की परतें…

01 दिसंबर 2025 को हुई सुनवाई में लोक सूचना अधिकारी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से जवाब रखे… लेकिन आयोग के समक्ष ये जवाब न तो तथ्यपूर्ण साबित हुए… न ही भरोसेमंद…

                 आयोग ने पाया कि… जानकारी रोके जाने का कोई वैध कारण नहीं था… आयोग के आदेशों की खुली अवहेलना हुई और प्रकरण को दबाने के प्रयास किए गए…

                  इन्हीं कारणों से आयोग ने दोनों मामलों में प्रति प्रकरण 15 हजार रुपये का अर्थदंड… कुल 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया…

 

फर्जी हस्ताक्षर का गंभीर आरोप…

आरटीआई कार्यकर्ता श्रीराम मारु ने आयोग के समक्ष यह भी बताया कि प्रबंधक द्वारा एक तथाकथित संतुष्टि पत्र प्रस्तुत किया गया… जिस पर अपीलार्थी के हस्ताक्षर दर्शाए गए… लेकिन आयोग को संदेह हुआ…

                    हस्ताक्षर मिलान कराया गया… और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया… हस्ताक्षर फर्जी पाए गए… आयोग ने ऐसे दस्तावेज को अस्वीकार कर दिया और पूर्व में लगाए गए मनगढ़ंत आरोपों को भी खारिज कर दिया…

 

एक माह में जुर्माना जमा करने के निर्देश…

राज्य सूचना आयोग ने आदेश दिया कि जुर्माने की राशि एक माह के भीतर आयोग कार्यालय में जमा कराई जाए…
         साथ ही आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक संस्थाएं भोपाल को निर्देश दिए गए कि संबंधित अधिकारी की सेवा पुस्तिका में इस दंड की प्रविष्टि की जाए…

                 प्रथम अपीलीय अधिकारी को भी स्पष्ट चेतावनी दी गई कि भविष्य में यदि अपीलों का विधिसम्मत निराकरण नहीं हुआ… तो अनुशासनात्मक कार्रवाई तय मानी जाएगी…

 

आरटीआई कार्यकर्ता श्रीराम मारू की दो टूक…

आरटीआई कार्यकर्ता ने एमपी जनमत से चर्चा में श्रीराम मारु ने कहा कि वे पिछले 11 वर्षों से जनहित में सहकारी संस्थाओं से जुड़ी जानकारी मांगते आ रहे हैं… लेकिन अक्सर यह कहकर जानकारी रोकी जाती रही कि सोसायटियां आरटीआई के दायरे में नहीं आतीं…

अब राज्य सूचना आयोग के इस आदेश ने स्थिति साफ कर दी है… सहकारी संस्थाएं भी जवाबदेह हैं… और सूचना का अधिकार कानून से बाहर नहीं…

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