नौकरी भी और मजदूरी भी… मनरेगा–आंगनबाड़ी–पंचायत का कागजी खेल उजागर...
22 दिसंबर 2025
धार/धरमपुरी/उमरबन
धार। जिले के धरमपुरी क्षेत्र के उमरबन ब्लॉक से सामने आ रहे तथ्य किसी एक विभाग की चूक नहीं… बल्कि सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग की एक गंभीर और संगठित तस्वीर पेश करते हैं… मामला महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से जुड़ा है… जहां नियमों को दरकिनार कर सरकारी धन के दुरुपयोग के स्पष्ट संकेत सामने आए हैं…
सूत्रों के अनुसार धरमपुरी क्षेत्र में पदस्थ कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिकाएं नियमित रूप से विभाग से वेतन प्राप्त कर रही हैं… इसके बावजूद इन्हीं नामों से मनरेगा में मजदूरी दर्शाकर भुगतान उनके बैंक खातों में किया गया है… यह स्थिति सीधे तौर पर नियमों का उल्लंघन है… क्योंकि एक ही व्यक्ति को एक साथ शासकीय वेतन और मजदूरी देना दोहरे लाभ की श्रेणी में आता है…
मनरेगा की पूरी कार्यप्रणाली पंचायत स्तर से संचालित होती है… मस्टर रोल का निर्माण… कार्यस्थल की हाजिरी… मेट और रोजगार सहायक की पुष्टि… जियो-टैग फोटो अपलोड… और अंततः भुगतान की स्वीकृति… यह सभी प्रक्रियाएं पंचायत व्यवस्था के माध्यम से ही होती हैं… ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि यदि आंगनबाड़ी में पदस्थ कर्मचारी मनरेगा मजदूर के रूप में दर्ज हुए… तो पंचायत को इसकी जानकारी कैसे नहीं रही…
यदि पंचायत इस पूरे प्रकरण से अनजान होने का दावा करती है… तो यह गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का मामला बनता है… और यदि जानकारी के बावजूद भुगतान हुआ है… तो पंचायत की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता… दोनों ही स्थितियां निष्पक्ष और विस्तृत जांच की मांग करती हैं…
जांच के दौरान यह तथ्य भी सामने आया है कि कई आंगनबाड़ी केंद्र केवल अभिलेखों में संचालित हो रहे हैं… मौके पर न तो बच्चे उपस्थित मिलते हैं… न कार्यकर्ता… न सहायिका… लेकिन रजिस्टरों में उपस्थिति दर्ज है… और शासकीय भुगतान नियमित रूप से जारी है… यह स्थिति विभागीय निगरानी व्यवस्था और निरीक्षण प्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है…
अब यह मामला केवल महिला एवं बाल विकास विभाग तक सीमित नहीं रह सकता… जांच का दायरा पंचायत… पंचायत सचिव… रोजगार सहायक… मेट… और संबंधित अधिकारियों तक बढ़ाया जाना आवश्यक है… ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह केवल लापरवाही है… या सुनियोजित भ्रष्टाचार…
यदि संबंधित विभाग और पंचायत प्रशासन स्वयं संज्ञान लेकर समय रहते निष्पक्ष जांच करते हैं… और दोषियों पर सख्त कार्रवाई होती है… तो न केवल सरकारी धन का दुरुपयोग रोका जा सकता है… बल्कि विभागीय साख भी सुरक्षित रह सकती है...
लेकिन यदि इस पूरे मामले को अनदेखा किया गया… तो यह संकेत होगा कि व्यवस्था स्वयं ऐसे मामलों को संरक्षण दे रही है…
एमपी जनमत के पास इस प्रकरण से जुड़े मस्टर रोल… भुगतान विवरण… और अन्य दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध हैं… यदि कार्रवाई नहीं हुई… तो इन तथ्यों को सार्वजनिक करना मजबूरी होगी… यह मामला केवल एक खबर नहीं… बल्कि जनता के पैसे… और सरकारी योजनाओं की विश्वसनीयता से जुड़ा गंभीर प्रश्न है…





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